कैसे करें ज्ञान की रचना

कल मैंने अपनी उच्च कक्षा के विद्यार्थियों पर एक छोटा सा प्रयोग किया। मैंने सभी विद्यार्थियों को अचानक से पूछा  अ से तो सभी विद्यार्थियों का एक साथ जवाब था अनार फिर मैंने पूछा आ से तो सभी ने फिर से जवाब दिया आम मुझे यह देखकर और सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ कि किसी भी विद्यार्थी ने नया शब्द नहीं बोला ।क्या विद्यार्थियों को सिर्फ अ से अनार  और आ से आम सिखाया गया है ,ऐसा नहीं है  कि  विद्यार्थियों ने बहुत से नए शब्द सुन  नहीं रखे थे चूंकि वे उच्च स्तर के विद्यार्थी थे अतः इनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती थी कि वे विद्यार्थी नए शब्दों से अनभिज्ञ होंगे ।इसका निष्कर्ष मैंने यह निकाला की सभी बच्चों के लिए शब्द रटे हुए हैं  इन अक्षरों के साथ बच्चों की कंडीशनिंग हो चुकी है जैसे ही अ अक्षर कानों में आता है सभी बच्चे एक साथ बिना कुछ सोचे समझे अनार बोल पड़ते हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि सभी  बच्चे शुरुआत से सिर्फ रटते आए हैं उन्हें कभी भी यह मौका नहीं दिया गया कि वह अपनी तरफ से कुछ नया लिख सकें आज भी जब बच्चों को कहा जाता है कि वह अपनी तरफ से अपने शब्दों में अमुक विषय का वर्णन करें तो बच्चों का यह कहना होता है कि टीचर के द्वारा लिखवाया गया वर्णन अक्षरस: नहीं किया तो टीचर उनके मार्क्स काट लेगी अर्थात बच्चों में भी यह धारणा बनी हुई है कि सिर्फ रटकर ही अच्छे मार्क्स लाए जा सकते हैं । जब बच्चे अपना विद्यार्थी जीवन शुरू करते हैं तब उनकी सोच अलग अलग दिशाओं में होती है परंतु उनके पास विषय वस्तु  के ज्ञान का अभाव होता है लेकिन जब उनके विद्यार्थी जीवन का अंत होता है तब उनके पास विषय वस्तु का ज्ञान तो होता है लेकिन सभी की सोच एक ही दिशा में सिमट जाती है क्योंकि शिक्षक अधिकतर प्रत्येक प्रश्न का उत्तर स्वयं बच्चों को बताकर उसे रटने के लिए कह देते हैं उनमें सृजनात्मकता , तर्क ,व विश्लेषण का कोई गुण विकसित नहीं हो पाता। कक्षा कक्ष में भी वही बालक शिक्षकों को अधिक पसंद आते हैं जो तर्क ना करें तथा रटकर विषय वस्तु को अपनी कॉपी में उतार दें। परंतु आज आवश्यकता है उस ज्ञान की जो बच्चे ने स्वयं निर्मित किया हो क्योंकि स्वयं के द्वारा निर्मित ज्ञान ही स्थाई होता है अतः हमें इस दिशा में कदम उठाना होगा कि बालकों के पूर्व ज्ञान से जोड़कर उन्हें नवीन ज्ञान प्रदान किया जाए तथा बालकों को पढ़ाने में ऐसी शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाए जो प्रजातांत्रिक स्वरूप पर आधारित हो तथा कक्षा कक्ष में बालक की सक्रिय सहभागिता को सुनिश्चित करें जैसे प्रश्न उत्तर ,वाद विवाद, प्रदर्शन विधि, अवधारणा मानचित्रण इसके अतिरिक्त अनेक पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं जैसे प्रदर्शनी,  निबंध प्रतियोगिता ,विज्ञान क्लब ,क्षेत्रीय भ्रमण, सेमिनार, खेलकूद, ड्रामा ,नृत्य प्रतियोगिता आदि में बालकों को भाग लेने के लिए  अधिक से अधिक प्रोत्साहित किया जाए जिससे बालक को अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने का स्वतंत्र अवसर मिल सके तथा उसमें चिंतन व निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो सके। ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में उनकी संलग्नता व सक्रियता को बढ़ाया जाए तथा नवीन विचारों को प्रोत्साहन दिया जाए तभी हमारी शिक्षण प्रक्रिया सार्थक सिद्ध हो सकती है ।

Blog By : Dr. Arti Gupta

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